दोस्ती की मिसाल

जब दोस्ती होती है तो दोस्ती होती है

और दोस्ती में कोई एहसान नहीं होता

गुलज़ार

दोस्ती, दुनिया के सबसे खूबसूरत रिश्ते में से एक रिश्ता। एक ऐसा रिश्ता जिसमे कोई मोल-भाव नहीं पूछता, जिस में कोई जात-धर्म नहीं पूछता, ना ही इसकी कोई उम्र होती है। दोस्ती एक ऐसा रिश्ता जो खून का ना होकर भी खून के रिश्तों से कहीं ज्यादा क़ीमती होता है। दुनिया में किसी के माता पिता नहीं होते, किसी की संतान नहीं होती। किसी के भाई बहन नहीं होते, किसी के रिश्तेदार नहीं होते, पर दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जिसे सब निभाते हैं, और हर किसी का एक ना एक दोस्त होता ही है।

और वही एक दोस्त हज़ारों के बराबर होता है, हमें हौसला और ताकत देने को हमेशा आतुर रहता हैं। चाहे कोई साथ दे या ना दे, सच्चे दोस्त कभी साथ नहीं छोड़ते। अच्छे दोस्त कभी भी कही भी मिल सकते है और वो अनजान लोग कब आपकी जिंदगी के सबसे महत्वपूर्ण लोगो में शामिल हो जाते है, पता भी नही चलता। मैं खुद अपनी दोस्त से एक ट्रेन के सफर के दौरान मिली थी और आज 9 साल बाद भी हम एक दूसरे के सबसे करीबी दोस्त है।

एक शाम मैं अपनी बालकनी में बैठे बैठे डूबते सूरज की लालिमा में खोई हुई चाय की चुस्किया ले रही थी, तभी कुछ आवाज़े कानो में पड़ी और मेरी तंद्रा भाग हुई। नीचे से कुछ बुजुर्ग आदमियों की आवाज़ आ रही थी।

यूं तो मैंने उन सबको हमेशा ही सड़क के किनारे, कुर्सी पर बैठे हुए कई बार देखा है। उनका यूँही मिलने और बैठकें घंटो बातें करना फिर अपने घरों को चले जाना, राजमार्रा की बात थी पर आज मन में ये खयाल आया के यदि बुढ़ापे में मेरा ऐसा कोई सर्किल नहीं रहा तो? एक करीबी दोस्त होने के अलावा के सर्किल भी तो एहमियत रखता है।

मैं सोचने पर मजबूर हो गई के जिस दौर में सब दोस्त फोन पर ही काम चला कर दोस्ती निभाते हैं, उस दौर में भी कुछ लोग हैं जिनके अपने दोस्त हैं, जिन से वे रोज मिलते हैं।

यही तो मजा होता है दोस्ती का!

दिन भर की थकान अपने दोस्तों के साथ बात कर के निकालना, दुनिया भर की बात करना, और अगले दिन फिर वही सब।पर हम कितनी ही बात क्यों न करें, कितने ही करें करें क्यों न रहे अपने दोस्तों के, न बातें खत्म होती हैं न मुलाकातें खत्म होती हैं। दोस्ती एक ऐसा सिलसिला है जो चलता ही जाता है। इस instagram और WhatsApp के ज़माने में अपने दोस्तो से रोज मिलना एक अलग ही रोमांचक बात थी मेरे लिए।

उन सब को इतने दिनों से देखते हुए एक रोज ख्याल आया कि क्यों ना इनसे बातों की जाए, कुछ दोस्ती, कुछ जिंदगी के बारे में समझ जाए।और बस, मैं पहुंच गई नीचे। वहां जब उन सबसे बात की तो पता लगा के ये सारे लोग काफी सालों से यहां रोज शाम इकट्ठे होते है। मैंने तो बस यही सोचा था कि दोस्त अपना समय काटने एक दूसरे से मिलते हैं, पर मुझे बहुत सारी बातें पता चली, जिन से काफी प्रभावित हुई।

इस ग्रुप के सारे लोग बहुत शिक्षित और काफ़ी प्रतिभाशाली है।मेरा परिचय लघाटे जी से हुआ जो एक वकील रह चुके है और वर्तमान में इनकम टैक्स से संबंधित मदद करते है। इस उम्र में उनका अपने काम के प्रति रुझान देखकर मैं बहुत प्रेरित हुई। इस पूरे ग्रुप में सबसे बुजुर्ग है कसूलकर जी जो कृषि के क्षेत्र में बहुत ज्ञान रखते है।

महाजन जी से सीनियर सिटीजन ग्रुप के सचिव हैं। साथ ही भोसकर जी इस ग्रुप के अध्यक्ष है और लांडे जी उपाध्यक्ष है, और इसमें लगभग 50 लोग शामिल है। यह ग्रुप सामाज सेवा के काम में हमेशा आगे रहता है। यह जानकर मुझे अच्छा लगा कि इस उम्र में भी ये सारे लोग समाज सेवा के कार्यो से जुड़े हुए है और देश हित में अपना योगदान दे रहे है।

इन्होंने इस सचिव की स्थापना ही इस नेक विचार से की थी कि ये ज़्यादा से ज़्यादा लोगो के काम आ सके। महाजन जी ने बताया कि नागपुर के जिस इलाके में हम रहते है, वहां सड़क, बिजली, पानी, ज़मीन से संबंधित कोई काम हो या आधिकारिक काम जैसे बैंक, आधार कार्ड सी संबंधित मुद्दा हो, ये हर संभव सहायता करने की योग्यता रखते है।

मैंने उनसे बहुत सारी बातें पूछी। चाहे वो आज के मोबाइल युग की हो या आज के जवानों की। और एक ही बात मालूम हुई, कि ये सभी लोग बहुत खुले विचारो वाले हैं। और यही नहीं, औरतो को लेकर भी इनके विचार काफी सराहनीय थे। महाजन जी की एक बात मुझे बहुत अच्छी लगी, वो ये थी कि, किसी को भी औरतो को ये बताने की जरूरत नहीं है कि उन्हें क्या करना चाहिए और क्या नहीं। वो बहुत अच्छे से जानती हैं की उनकी क्या जिम्मेदारियां है, और वो घर और बाहर के कामों में हमसे ज्यादा व्यस्त रहती है और अपना समय कहाँ बिताना है, इसकी अच्छी समझ रखती है ।

उनके विचार आज के जवानों के बारे में भी ऐसे ही थे। जवानों की उपेक्षा और उनका आंकलन करने के बजाए यह जरूरी है कि हम उनकी हर संभव सहायता करे और इनपर भरोसा रखे क्योंकि आज का जवान अच्छे से जानता है कि उसे क्या करना हैं।

फिर बात आई इनकी hobbies की तो मालूम हुआ कि महाजन जी ने 30 साल स्टेनोग्राफ़ी सिखाई है, दूसरी तरफ़ भोसकर जी ना सिर्फ़ बहुत अच्छे गॉर्डनर है बल्कि कई प्रकार के बहुत खूबसूरत पेपर क्राफ़्ट्स और मॉडल्स बनाते है, अलग अलग पद्धति को दर्शाने के लिए। भांडे जी को ना सिर्फ़ साफ़ सफ़ाई रखने का शौक़ है बल्कि ये साइकिलिंग में भी अव्वल है।

इन सब की बातें सुनकर और विचार जानकार मुझे ना सिर्फ़ प्रेरणा मिली है बल्कि अपने आने वाले कल के लिए और भी उत्सुकता हुई । मेरे पास समय की पाबंदी थी पर जितनी भी बातें मैंने इन सबसे की उसकी मुझे बहुत खुशी है।

इस सीनियर सिटीजन ग्रुप से बात करके मुझे ये समझ आया कि दोस्ती बस घूमना फिरना और मज़े करने का नाम नहीं है बल्कि हर रोज़ एक दूसरे को प्रेरित करने का और आख़िर में एक अच्छे इंसान बनने का भी नाम हैं। मुझे ये सारे लोग बहुत काबिल लगे और इनके विचारो ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया कि generation gap तभीं होता हैं जब आप किसी चीज़ को स्वीकार नहीं कर पाते । पर इस ग्रुप के लोगो से बात करने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंची कि केवल आज का जवान ही नही, आज का बुजुर्ग भी बेहद जागरूक और खुली विचारधारा का हैं। हम जितनी अपेक्षा बुजुर्गो से करते है उतने ही प्रयास हमने भी करने चाहिए उनसे साथ घुलने मिलने और उन्हे समझने के लिए।


Uljhe Hue Dhaage

उस दिन अचानक तुम्हारा message में ये कहना कि “अब हमें बात नहीं करनी चाहिए” थोड़ा अजीब लगा।
हाँ हमारा रिश्ता टूट चूका था, हाँ हम हो चुके थे अलग, हाँ मेरी और तुम्हारी दुनिया अलग थलग था। और हाँ मुझे याद हैं कि मैंने भी कई दफा तुमसे ये कहा था कि हम अब बातें नहीं करेंगे और हम वाक़ई बातें बंद भी कर देते थे।

पर फिर आख़िरकार तुम्हारा message आ ही जाता था और हमारी बातें फिर शुरू हो जाती थी
पर अक्सर मैं यही सोचती थी कि कबतक ऐसा चलेगा? सच कहूं तो तुम्हारा वो message आना मुझे अजीब नहीं, बुरा लगा, बहुत बुरा लगा, ना जाने क्यों? ऐसा लगा जैसे कुछ टूट सा गया हो मेरे अंदर। अब ऐसा तो नहीं था कि तुमने कोई पहली बार मेरा दिल तोड़ा हो, पर मुझे दर्द वैसा ही हुआ जैसे तुमने पहली बार दिल तोडा हो
हाँ शायद, इतने महीनो में पहली बार ही दिल तोड़ा था तुमने मेरा।

पर इसमें तुम्हारी क्या गलती थी भला?
तुमसे मैं कई दफा वही बातें दोहराई थी तो अब मुझे बुरा लगना नहीं चाहिए था, पर लगा कभी कभी हम जिन चीज़ो या लोगो को बारे में जैसा सोचते हैं वो वैसे नहीं निकलती है। कभी कभी जिन बातो से इंसान को फर्क भी नहीं पड़ना चाहिए वो बातें कलेजे को अंदर तक तार तार कर जाती हैं और जिन बातों को लेकर हम परेशान रहते हैं, वो बातें वाक़ई में उतना दुःख नहीं देती।

पर ये बात तो मुझे को unexpected trauma सी लग रही थी। इंसान कि emotions कितना अजीब खेल खेलते हैं न कभी कभी।

शायद तुम्हारा मैसेज ही गलत वक़्त पर आया था, शायद जब मुझे तुम्हारी ज़रूरत थी, जब मैं खुद को बहुत टुटा हुआ और कमज़ोर महसूस कर रही थी, तब तुम्हारा ऐसी बातें कहना मुझे इस तरह लगा मानो तुम एकदम से बदल गए होगे, जैसे मैं तुम्हारे इस अवतार को जानती ही नहीं

हम जब साथ थे ही नहीं तो क्यों मैं तुमसे expectations रखे हुए थी? शायद इसलिए कि हमने वो खूबसूरत 5 साल साथ बिताये थे। हमारा वो रिश्ता बहुत मज़बूत था, पर वो रिश्ता टूट भी तो गया था और हम भी टूट चुके थे, हम भी तो बहुत आहात थे। पर फिर भी हम उन धागो से कही न कही जुड़े हुए थे।

हमारे धागे अब भी आपस में उलझे हुए थे, अनसुलझे और एक गाँठ बन गई थी जो हमे एक दूसरे से अलग होने नहीं दे रही थी, पर जब जब हम एक दूसरे से दूर होने का फैसला लेते, उलझने कि बजाये वो धागे सुलझते गए और गांठे खुलती गई जो हमने एक दूसरे से जोड़े हुए थी।

पर शायद अच्छा ही हुआ जो तुमने कह दिया। तुमने कभी नहीं कहा था ये सब, पर उस दिन जब तुमने कहा तो तुम्हारे उस फैसले कि साथ वो आखिरी गाँठ भी खुल गई जो हमे जोड़ राखी थी।

तो हाँ, भले ही मेरा दिल भरी सा लग रहा है जैसे किसी ने मेरे सीने पर टनों का बोझ रख दिया हो, पर मैं अब भी उस भारी दिल कि साथ तुमसे प्यार करती हूँ इसलिए, अब मैं तुम्हे कह रही हूँ हमेशा कि लिए…
अलविदा जान!

Hope

My mom always tells me, never lose hope. Hope is a good thing. Sometimes I don’t believe what she says, sometimes I let the doubt flow through my veins, reaching my mind and heart and I get this adreline rush..

The feeling that nothing is going to happen now. But there is still a small ray of hope that encounters that adreline and helps me stay hopeful.

I hope that someday you will come back, maybe not,

But I cannot lose the hope I have

I hope you will forgive me

I hope you will love me like you did

I hope we will have a future together

I am not ready to lose this hope

Because you are the only one that I have ever wanted in my life

If I lose that too, I have nothing left

वो-प्यार की अभिव्यक्ति

तुम्हारे घर के नीचें खड़े खड़े आधे घंटे से ऊपर हो गया मुझे तुम्हारा इंतज़ार करते करते, पर साहब हैं कि आने का नाम ही नहीं लेतेे। कौन कहता है कि बस लड़किया ही देर लगती हैं तैयार होने में? वो सब लोग अभी ‘इन’ से मिले नहीं हैं। मैं मन ही मन हँस दी। दो-तीन बार गाड़ी का हॉर्न बजाया, तब जाकर तुम नीचे आते हो।

जैसे ही कार के अंदर दाखिल होते हो, मुझे हँसता देख कर तुम अपनी भौए चढ़ाकर रूठ के बोलते हो,”हो गया महारानी का हँसना तो अब चले?”

“जी बिल्कुल”, मैं भी हँस देती हूँ और कार हवा से बातें करने लगती हैं। मेरे यू हँसने पर तुम हर बार रुठ जाया करते और मैं मनाती भी नहीं तुम्हें। जानती हूँ ये झूठ मूठ का रूठना तुम्हारा। तुम्हें कार चलाना तब तक पसंद हैं, जब तक मैं साथ नहीं हूँ, जब मेरे साथ होते हो तो मैं साहब की ‘ड्राइवर’ बन जाती। हर बार कोई न कोई तरीके से मैं तुमको सताती और तुम चिढ़ जाया करते, लेकिन मुझसे मिलने की खुशी तुम्हारा चेहरा बयां कर देता। तुम कार में दाखिल होते हो और मेरी नज़र तुमपर से हटने का नाम नहीं ले रही। मन तो कर रहा था कि कार बाद में चलाऊ, पहले जी भर के तुम्हें देख लू।

ग़ज़ब लग रहे थे तुम, काले रंग के ट्रॉउसर के साथ काले रंग की कमीज़ में। ऐसा लग रहा था कि अमावस की रात में चाँद निकल आया हो। तुम्हारे इस गोरे रंग की मैं हमेशा तुम्हें उलाहना देती और तुम्हें चिढ़ाने के लिए अक्सर कहती कि तुम “सफ़ेदी से भरी बाल्टी में गिर गए थे बचपन में इसलिए इतने गोरे हो” और हँसने लगती। पर मेरे गेहुँए रंग के लिए तुमने कभी मज़ाक में भी मुझे कुछ नहीं कहा कभी। तुम्हें निहारते हुए गाड़ी चलाना तो मेरे लिए आम बात थी, पर आज तुम कुछ ज़्यादा ही अच्छे लग रहे हो। गाड़ी चलाते हुए सड़क पर काम और तुम्हें ज़्यादा देखे जा रही हूँ।

गेअर से हाथ हटाकर हौले से अपने हाथ को तुम्हारें हाथ पर रखकर सहलाती हूँ फिर तुम्हारें हाथ को अपने गालो पर लगाकर धीरे से तुम्हारी हथेली चूमती हूँ। तुम शर्मा जाते हो और तुमसे ज़्यादा मैं। फिर तुम्हारें की उंगलियों में अपनी उंगलिया फंसा कर तब तक नहीं छोड़ती जब तक गेअर ना बदलना पड़े। धीमीं हवाएं चलती रहती हैं और मैं तुम्हारें ख़यालों में खोई रहती हूँ और तुम मेरे चेहरे पर आ रहे मेरे बालों को हटा कर, करीने से मेरे कान के पीछे करते हो। और मुझे, तुम्हारें दिए हुए झुमकों को पहना देख तुमने ख़ुशी से कहा,”तो आख़िर तुमने पहन ही लिए झुमके”।
मैंने भी बिना तुम्हें देखे बस हौले से मुस्कुरा के हॉमी भर दी पर कुछ कहा नहीं। शर्म से लाल हुए जा रहीं थी, बोलती भी कैसे? मुस्कुराता देख तुम मुझे सवालों भरी नजरों से देखते हो। “मैं चाहती थी कि जब भी मैं ये झुमके पहली बार पहनू, तुम्हारें सामने ही पहनू। तुम भी देखना चाहते थे कि ये मुझपर जांचते हैं या नहीं’।

“ऐसा कबसे सोचने लगी तुम कि मेरे सामने ही पहले पहनोगी ये झुमके?”

“अच्छा!!! तो फिर पिछले 6 महीनों में ये काली कमीज़ क्यों नहीं पहनी? और जब मुझसे मिलना हुआ आज, तब ही पहने हो?”

तुम मेरे तर्कों पर मुस्कुरा कर कहते हो,”तुमसे कोई नहीं जीत सकता” और मैं भी हँस देती हूँ। तुम्हारे बाएं गाल पर जो काला तिल हैं, उसे जब जब देखती हूँ मन करता हैं कि उसे चूम लू, पर अभी कहाँ वो वक़्त हैं, कहाँ वो जगह?

मैं तुम्हें निहारने में इतनी मशरूफ थी कि पता ही नहीं चला कब लाल बत्ती हरी हो गई। मैं इतनी खोई हुई थी कि गाड़ियों के हॉर्न मेरे कानों में पड़े तो ऐसा लगा मानों मेरी निद्रा-भंग हुई हो। मैंने गाड़ी को रफ्तार दी और हमारी बातों को भी। बातें करते करते मेरी किन्ही बातों पर तुम बेबाकी से हँस दिया करते और मैं भी तानाकशी से बाज़ नहीं आती। जब तुम्हें कोई जवाब नहीं सूझता तब मुझे चिढ़ाने और गुस्सा दिलाने की भरसक कोशिश करते हो तुम। उफ्फ !!! तुम्हारा ये बचपना।

बातों में इतने खोए हुए थे हम कि पता ही नहीं चला हम मंज़िल पर कब पहुँच गए। सूरज डूबने में अभी थोड़ा वक्त था इसलिए हमने कार से उतर कर थोड़ी देर टहलने का फैसला किया। वादियों में लिपटा हुआ हरा भरा मैदान! इसकी खूबसूरती अक्सर लोगो को आकर्षित करती। सूरज की रौशनी से छोटे छोटे पौधें ऐसे लग रहे थे जैसे किसी ने ज़मीन पर सुनहरी चादर ओढ़ा दी हो। हल्की ठंडी हवाओं से पेड़ो का लहलाहना और फूलों की मीठी सी खुशबू और ये खुशगवार मौसम इस वादी को और खूबसूरत बना रहे थे। लग रहा था जैसे किसी ने इस जगह रोमानियत का इत्र छिड़क दिया हो। हवा का रुख देखकर मैंने जुड़ा बांध लिया, पर तुम बेचारे क्या करते। तुम्हारें बाल ना तो मेरे जितने लंबे थे कि तुम बांध सको न इतने छोटे थे कि तुम्हें कोई फर्क ना पड़े। मुझसे बातें करते करते अपने बालों को चेहरे से हटाने कि नाकाम कोशिश करते हुए तुम थककर मेरी मदद लेते हो।

तुम्हारें कोमल बालों पर अपने हाथों को फेरते हुए हल्के से सहलाने लगी और पता नहीं खुली आँखों से क्या क्या सपने देखती रही। “अब चोटी डालोगी क्या?” तुमनें कहा।

“हुह!!! भागों तुम। धरम करो, धक्का खाओ”, मैंने चिढ़कर जवाब देते हुए तुम्हें धक्का दिया।

“आय लव यू !!!”, तुमनें बहुत प्यार से मेरे बालों को जुड़े से आज़ाद करते करते कहा।

मैं शर्मा के मुस्कुरा दी और अपने बाल फिर से बांधने लगी। फिर हम वहाँ से उठ कर टहलने लगे। बिना कुछ बोले तुमने हौले से मेरा हाथ थाम लिया और चलने लगते हो। बीच बीच में मेरे चेहरे पर आते बालों को मुझे हटाता देख हँसने लगते, बिल्कुल किसी शरारती बच्चे के जैसे।

इस वादी में समय कैसे बीत जाता हैं पता ही नहीं लगता। ऐसे हसीन मौसम में अपने प्यार का हाथ थामे टहलना, हाथ मे हाथ डाल कर बातें करना, सब एक सपने जैसा लगता हैं। शाम होते ही परिंदों के काफिले का अपने घरों को लौटना, नीले बादलो का सुरमयी हो जाना और ठंडी हवाओं के साथ सूरज डूबते देखना, इन सब को और खूबसूरत बनाता हैं तुम्हारा साथ।

तेज़ हवाओं के साथ मेरे दुपट्टे को संभालना भी मुश्किल था कि तुमने मेरी लटों को जुड़े से आज़ाद कर दिया। “ये क्या कर रहे हो?” मैंने झुंझलाहट में पूछा।

“कुछ भी तो नहीं” तुम हँसने लगे।

“तुम नहीं सुधरोगे हैं ना?” मैंने नाराज़गीे से कहा।

“तुमको लगता हैं ऐसा हो सकता हैं” तुमने मुस्कुराकर कहा और मेरा दुपट्टा मुझें ओढ़ा दिया। मुझे अपनी बाँहों में भर लिया और ना जाने कितनी हम देर यूँही खड़े रहे। कुछ देर बाद तुमने मेरे माथे को बड़े प्यार से चूमकर कहा “मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूँ”।

मैं मुस्कुरा के तुम्हारी आँखों में आंखे डाले बस देखती रहती हूँ, फिर शरमा के तुमसे गले मिल जाती हूँ। इतना इत्मिनान और सुकून कही नहीं। अंधेरा होने को था और अगली सुबह तुम्हें वापस दिल्ली रवाना होना था, सो हम लौट आए। तुम्हारें घर दाखिल होकर तुम अपने बैग में ज़रूरी सामान भरने लगे औऱ फिर हम रात के खाने के लिए निकल गए। हमने बहुत अच्छा वक़्त बिताया और हम वापस आ गए।

मुझे कार पार्किंग में लगाते देख तुमने पूछा “आज वापस घर नहीं जाओगी क्या?”

“आज नहीं, काल सुबह 6 बजे की ट्रेन हैं ना सो तुम्हें ट्रैन में बैठकर जाऊँगी”

“हे भगवान !! ये लड़की पीछा ही नहीं छोड़ती मेरा” ये कहकर तुमने मुझे गले लगा लिया।“छोड़ना भी नहीं कभी!! प्लीज्” तुमने उदास होकर कहा।

“हाँ पागल, अब उदास मत हो” ये कहकर मैं तुमसे अलग हुई और दरवाज़े को खोलने लगी। “अरे यार!! मैं फ़ोन तो कार में ही भूल आई। तुम ला दोगे प्लीज्, ?” मैंने बहाना बनाया।

“जी मैम” और तुम नीचे चले गए।

तुम जब ऊपर आए तो पूरा अंधेरा था और जैसे ही तुम घर के अंदर दाखिल हुए, पूरा कमरा रौशनी से जगमगा उठा। तुम्हारा चेहरा देखने लायक था। तुम स्तंभ थे पर चेहरे पर खुशी साफ़ झलक रही थी। मैं तुम्हारा हाथ पकड़ कर तुम्हें लेकर चल रही थी। गुलाब की पंखुड़ियों की पगडंडी और किनारे पर भीनी पीली सी रौशनी फैला रही मोमबत्तियों की कतारें और कमरे की दीवारों पर लाइट्स से सजावट। कमरा पर कर के हम बालकॉनी में दाखिल हुए जहाँ एक टेबल पर गुलाब के फूलों का गुलदस्ता रखा हुआ था और पूरा घर खुशबू से सना हुआ था।

“ये सब कब? कैसे? किसने? क्यों?” तुम सवालों की लड़ी लगा रहे थे।

“जब हम वादियों में टहल रहे थे तब हमारे दोस्तो ने ये सब किया। मैंने कहा था उनसे ऐसी तैयारी करने के लिए। क्या हुआ ? पसंद नहीं आया क्या सरप्राइज?” मैंने पूछा।

“कैसी बातें कर रही हो यार” ये कहकर तुम मेरे गले से लग गए। तुम्हारी आँखों में आँसू थे, खुशी के।
मैंने तुम्हें गुलदस्ता पकड़ाया और तुम्हें अपनी आँखें बंद करने के लिए कहा।
“अब खोलो अपनी आँखें”
मैं तुम्हारें सामने अपने घुटनों पर बैठी थी।
“मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ। ना पहले कभी बता पाई और पता नहीं कि बाद में कब इतना वक़्त मिले। इसलिए सब अभी कहना चाहती हूँ। मैं चाहती हूँ कि कल जब तुम यहाँ से जाओ तो मेरे होकर जाओ औऱ मुझे अपना बनाकर। हमेशा हमेशा के लिए। आय लव यू लक्ष्य।”
“आय लव यू टू पागल” तुमनें अपने आँसू पोछते हुए कहा।
मैंने तुम्हारी उंगली में एक छोटा सा नट डाल दिया।
“ये क्या हैं पागल?” तुमनें हँस के पूछा।
“अच्छा !! तो अब साहब को हीरे की अंगूठी चाहये?” दोनों हँस दिए।
एक मैकेनिकल इंजीनियर को प्रोपोज़ करने का इससे बेहतर तरीका नहीं था मेरे पास। तुमने मुझे गले लगा लिया। फिर हम झूले पर बैठ गए और मैं तुम्हारें कंधे पर सर रख के तुमसे बात करते करते कब सो गई पता ही नहीं चला।
सुबह तुम्हारी आवाज़ से नींद खुली। तुम हाथ मे 2 कप चाय लिए खड़े थे। मुझे चाय थमाते हुए तुमनें मेरे माथे को प्यार से चूमा और मेरे साथ झूले पर बैठ गए।
मैंने चाय की चुस्की लेते हुए कहा,”ऐसी चाय रोज़ पिलाओगे?”
“हाँ अगर तुम रोज़ ऐसे ही मेरे साथ रहोगी” और मेरे सिर पर हाथ फेरने लगे।
“ओह्ह गॉड!!! वक़्त क्या हो रहा हैं? तुम्हारी ट्रैन छूट जाएगी। मुझे उठाया क्यों नहीं तुमने, चलो अब जल्दी करो” मैं परेशान हो गई।
“शांत हो जाओ” तुमने मुझे पकड़ कर बैठाया। “मैं नहीं जा रहा। एक दोस्त को आज दिल्ली जाने की ज़रूरत थी और मुझे तुम्हारी। सो मैं कुछ दिन और यहाँ रुकना चाहता हूँ। तुम्हारें साथ, तुम्हारें पास रहकर।”
मैं खुशी से तुमसे लिपट गई। हमने काफी अच्छा वक़्त बिताया और अगले दिन हम फिर से उसी मैदान में टहलने गए, जहाँ तुमने मुझे दुनिया की सबसे खुशनसीब लड़की होने का एहसास दिलाया। सूरज ढलने को था और तुम मुझे मैंदान के पास एक टीले पर ले आये जहाँ से सब कुछ बहुत खूबसूरत लग रहा था।
“क्या तुम मुझसे शादी करोगी?”
“हाँ करूँगी। और मैंने भी कल तुमसे यही पूछा था”
“जानता हूँ। बस जवाब दो मुझे, करोगी मुझसे शादी?”
“हाँ करूँगी?” और तुमने मेरी उंगली में नट नहीं पर एक असली अंगूठी पहना दी।
“आज से तुम सिर्फ मेरी” ये कहकर तुमने मुझे गले से लगा लिया।
सब कुछ वही था। वही वक़्त, वही जगह, वही हसीन मौसम, वही तुम और वही मैं। ठंडी हवाओं का चलना, मेरे दुपट्टे का मुझसे ना संभल पाना और मेरे बालों का हवा में उड़ना। एक दूसरें का हाथ थामे टहलना और पंछियों का फिर अपने ठिकानोंं को लौटना। इन सब से ऊपर था मुझे अपना ठिकाना मिलना और मेरा ठिकाना तुम्हारें सिवा और कहाँ? कुछ बदला था तो बस मेरी ज़िंदगी।
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