Galatfehmiyaan (गलतफहमियां )

“मुझे तुमसे बात ही नहीं करनी दोबारा! और इससे पहले कि मैं तुम्हे ब्लॉक कर दू, प्लीज मुझे मैसेज करना बंद करो”, दृष्टि ने गुस्से में साहिल को मैसेज किया।
काफी देर से मैसेज में ही दोनों की बहसबाज़ी शुरू थी। न दृष्टि ने रुकने का नाम लिया ना साहिल ने।

5 साल से साथ में थे, फिर भी न जाने क्या बातें थी ऐसी कि दोनों कभी आपसी सामंजस्य बैठा ही नहीं पाते थे।

२ मिनट बाद साहिल का रिप्लाई आता है “यू नो व्हाट? लेट्स एन्ड दिस ! ख़त्म करो सब! मुझे रहना ही नहीं है तुम्हारे साथ! आई वांट तो ब्रेक अप ! आई ऍम ब्रेकिंग उप विथ यू”

“मुझे भी नहीं रहना तुम्हारे साथ”, दृष्टि ने भी गुस्से में जवाब दे दिया

“परफेक्ट, वैसे भी तुम इस लायक नहीं हो, यू आर नॉट वर्थ इट”, साहिल ने अगला मैसेज भेजा
“तुमको मेरी वर्थ, मेरी कीमत है भी नहीं साहिल”, दृष्टि ने अपने आंसुओ को पोछते हुए मैसेज टाइप किया।

“मैं अकेले रहना बेहतर समझती हूँ”, दृष्टि ने गुस्से में रिप्लाई किया

“तुम कभी सच्चाई एक्सेप्ट नहीं कर सकती दृष्टि! मैं तुम्हारे साथ रहने के बजाय किसी बेहतर इंसान के साथ रहना पसंद करूँगा”, साहिल का जवाब आया।

और भी बहुत कहा सुनी हुई और आखिरकार दृष्टि ने साहिल को ब्लॉक कर दिया, पर उसने हार नहीं मानी।
उससे सहन नहीं हुआ के उसका पक्ष सुने बिना दृष्टि कैसे उसे ब्लॉक कर दिया।
वो भला हार कैसे मानता।

आखिरकर साहिल ने उसे गूगल पे और ईमेल आई डी पर भी अपना पक्ष सुना दिया।

“सामने वाला अगर कुछ नहीं कहता इसका ये मतलब नहीं है दृष्टि कि तुम्हारे कारण वो कोई परेशानी नहीं झेल रहा। पर तुमको कभी नहीं पता चलेगा कि कौनसी परेशानी हुई मुझे तुम्हारे कारण। मैंने बहुत कोशिश की सहन करने की और अब तुमको कभी कुछ पता भी नहीं चलेगा। तुम मेरे वक़्त के लायक नहीं हो, अब नहीं। ये मेरा तुम्हे आखिरी मैसेज है। मैंने तुम्हारे लिए सम्मान खो दिया और अब तुम मेरे लिए मायने नहीं रखती।”

दृष्टि को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस बात पर हँसे कि साहिल का अहंकार इतना बड़ा है कि उसने गूगल पे और जीमेल भी नहीं छोड़ा या इस बात पर निराश हो जाये कि अब साहिल के दिल में उसके लिए कोई इज़्ज़त नहीं है। आधी रात आंसुओं में कट गई।

सुबह हुई तो साहिल का कोई मैसेज नहीं था, दृष्टि भी उठकर अपने चेहरे की हालत सुधारी, घरवालों को आखिर कैसे पता लगने देती कि मेरे ज़हन में क्या चल रहा है।
काम करते करते थक गई, तो दोबारा से साहिल के मैसेज पढ़ लिए। हम इंसान भी अजीब होते हैं, एक बार में सच्चाई न तो समझ आती है, न हज़म होती है।

अगली सुबह 6 बजे फ़ोन बज उठा।
आधी नींद में फ़ोन उठाया तो उस तरफ से साहिल कि सहमी सी आवाज़ आई, ” कैसी हो?”
“उम्म्म साहिल ! क्या हुआ? तुम ठीक तो हो ना? घर पर सब ठीक तो हैं? क्या हुआ इतनी सुबह सुबह फ़ोन लगाया तुमने?”, दृष्टि ने साहिल पर सवालों की बरसात कर दी।
और करती भी क्यों ना? वो जिससे अपनी जान से भी ज़्यादा प्यार करती है, उसके किसी तकलीफ में होने की आशंका तो परेशान करेगी ही।

“नहीं नहीं, सब ठीक है, मैं ठीक हूँ”, साहिल ने दृष्टि को समझाया।
“तो फिर इतनी सुबह कोई ऎसे फ़ोन करता है क्या भला?”, दृष्टि ने रूठ कर जवाब दिया

“मैं तुमसे दूर नहीं हो सकता, तुमसे अलग नहीं रह सकता, प्लीज मुझे माफ़ कर दो दृष्टि”
“आई ऍम सॉरी टू बेबी”, दृष्टि ने रुआंसा होकर जवाब दिया।

कुछ देर तक बात करने के बाद दृष्टि ने कहा, “सुनो, मुझे अब फ़ोन रखना होगा, घरवाले जागने वाले है, और रात भर से मैं नहीं सो पाई, तुम भी परेशान ही हो रहे होगे, आराम कर लो, हम शाम में बात करते है”
“हाँ ठीक कह रही हो, तुम सो जाओ, मैं पढाई करता हूँ, बाय” कहकर साहिल ने फ़ोन काट दिया।

दृष्टि ने सोने कि कोशिश करने के लिए अपना पसंदीदा गाना फ़ोन पर लगा दिया।
…. ना कोई हैं ना कोई था, ज़िन्दगी में तुम्हारे सिवा, तुम देना साथ मेरा, ओ हमनवा …..

गाना सुनते सुनते दृष्टि सोचती रही कि काश ये सब बातें नहीं होती, साहिल का 1 हफ्ते बाद आई.ए.एस की प्रवेश परीक्षा है।
खैर, अब सब ठीक हो गया है, बीती बात सोचकर अब परेशान होने से कोई फायदा नहीं। बीता हुआ वक़्त दोबारा नहीं आ जाएगा।

कभी कभी हम गुस्से में सिर्फ खुद को देख पाते है, पर क्या वाकई हम खुद को उस गुस्से में देखते है? नहीं
हम बस अपनी अना के बारे में सोचते है, और ज़रूरी बातो की, लोगो की उपेक्षा करने लगते है, और फिर बहुत देर हो जाती, बहुत देर…

“बहुत देर से सो रही है, उठ जा बेटा, तेरी कोई मीटिंग नहीं हैं क्या आज शाम में? 6 बज रहे है” माँ ने दृष्टि को उठाते हुए कहा।

“क्या 6 बज गए? क्या हुआ माँ? 6 बजे तो मैं उठी थी और अभी 11 नहीं बजे है, टाइम हैं अभी मीटिंग शुरू होने में”, दृष्टि ने कुछ चौकते हुए कहा।

कुछ पल के लिए उसे कुछ समझ नहीं आया। वो तो रोज़ सुबह इतनी ही देर में सोकर उठती है, फिर आज माँ उसे क्यों जल्दी उठा रही है।

“सुबह नहीं बेटा, शाम के 6 बज रहे है। तू काम करते करते ही सो गई थी, कल रात भर सोई नहीं क्या तू अच्छे से?”

“क्या? शाम के 6? सुबह नहीं हुई?”, दृष्टि की आँखों के आगे अँधेरा छाने लगा।
माँ मेरी मीटिंग है शायद, मैं कमरा अंदर से बंद कर रही हूँ ” दृष्टि ने घबराकर, जैसे तैसे खुद को सँभालते हुए कहा।
“ठीक है बेटा”, कहकर माँ उसके कमरे से चली गई।

दृष्टि निढाल होकर अपनी चेयर पर बैठ गई। वह सोच में पड़ गई कि आखिर किस तरह का खेल खेला नियति ने उसके साथ।
उसे लगा सब ठीक हो गया, पर वो सब मात्र एक सपना था।

दृष्टि न तो फूट फूट के रोकर अपना दुःख निकाल सकती थी न किसी से बात कर के अपनी आपबीती सुना सकती थी।
उसे दुःख बहुत था, शायद इस बात का कम कि साहिल का फ़ोन नहीं आया और इस बात का ज़्यादा कि वो सपना उसे ना जाने कितनी उम्मीदे दे कर सब कुछ चकनाचूर कर गया।

उसने साहिल के साथ अपनी बातचीत दोबारा पढ़ी, शायद कोई गलतफहमी हो गई थी, ऐसे मसलो पर कभी मैसेजेस पर बाते नहीं करनी चाहिए।
जैसे तैसे उसने खुद को समेटा और फैसला किया अपने अलग रास्ते पर निकलने का।

दिल में दुःख भी था और दर्द सीने तक पहुँच रहा था, पर अब जो हो गया था वो शायद होने ही वाला था, कुछ बातें हमारे हाथो में नहीं होती, और कुछ लोग हमारी लकीरों में नहीं होते। ज़िन्दगी न किसी के आने से रूकती हैं ना किसी के जाने से थमती है, हाँ वो बस थोड़ी धीमी पड़ जाती हैं पर शायद जीना इसी का नाम हैं।

अपने मतभेदों को समझना और आगे बढ़ना, शायद यही सही हैं।

Leave a comment